Suno man ek anokhi baat
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मन के बिना इंद्रियाँ अपना विषय ग्रहण नहीं कर सकती
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मन में समस्त इंद्रियां हैं बिना इंद्रियों के मन इंद्रियों के विषय समस्त विषयों को ग्रहण करता है ex:स्वप्न
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बंधन और मोक्ष, सुख और दुख सबका मूल कारण मन है
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आत्मा परमात्मा से अनादि उत्पन्न है इसलिए अंश है
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आत्मा का ओरिजिनल रूप चेतन निर्मल सदा आनन्दमय है
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भगवान के टुकड़े नहीं हो सकते, टुकड़े वुकड़े लिमिटेड माइक वस्तुओं के हुआ करते है
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जीव अनादिकाल से माया बद्ध है
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जीव के साथ अन्तःकरण अनादिकाल से प्लस है जहाँ जहाँ जीव गया जायेगा वहाँ वहाँ अन्तःकरण था रहेगा
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संत और भगवान कृपा के सिवा कुछ कर ही नहीं सकते
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भगवान गुस्सा करेगा तो क्या करेगा बिचारा उसके पास कुछ है ही नहीं, उसके द्वारा आनंद के अतिरिक्त कोई रिएक्शन हो ही नहीं सकता
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भगवान के भीतर, बाहर, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम सर्वत्र आनन्द ही आनन्द लबालब भरा है
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मन जड़ है और प्रत्येक कर्म का कर्ता है जाग्रत में भी और स्वप्न में केवल अकेले ही सारा वर्क करता है बिना इंद्रियों के
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आत्मा शरीर से निकलता है तो इंद्रिय मन साथ जाते हैं सदा के संगी हैं
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सुने सबकी करें मन की, जिस दिन आप लोग ये न करेंगे उस दिन कम्पलीट सरेंडर हो जायेगा, उसी क्षण
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मन के सुनने का सारांश है 'मान' लेना, विश्वास करना
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शास्त्र वेद भगवान और गुरु आपकी बीवी के बराबर भी नहीं है की आप उनकी बात मान ले, इस मन का अटैचमेंट संसार में न करना अच्छा गुरुजी और किये भी जा रहे हो मान नहीं रहे हो
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जानने का मतलब 'मानना'/विश्वास करना अगर नहीं माना तो जानने से कोई लाभ/सेंस नहीं
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यदि कामनाएं चली जाए तो अमृत/ब्रह्म हो जाए, ब्रह्मानंद का अनुभव कर ले, कुछ न करना/पाना शेष है
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काम माने कामना, सुनने, देखने, सूंघने, रस लेना, स्पर्श करना, ये 5 कमाना ही अनादिकाल से सनद्ध है
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कामना की पूर्ति पर लोभ अपूर्ति पर क्रोध
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आयुर्वेद के अनुसार जितने भी रोग विश्व में पैदा होते है शरीर जन्य में वो वात पित्त कफ इन दोषों के बिगड़ने से होते है
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सुषुप्ति अवस्था में कोई मानस रोग नहीं होता(लोभ, क्रोध, ईर्ष्या)
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अगर अपने सामान से बड़ा सामान कोई देखता है तो अपने सामान में सुख की अनुभूति नहीं होती फिर उसकी तरफ मन चला जाता है
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गहरी नींद में चूँकि कोई अनुभव नहीं होता इसलिए उससे बड़ा और कोई सुख है इसका प्रश्न ही नहीं उठता इसलिए आपको संसार का सबसे बड़ा सुख मिलता है गहरी नींद में
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गहरी नींद से भी बड़ा सुख 1 और आपको मिलता है जब आप जाग्रत अवस्था से गहरी नींद में प्रवेश करते हैं वो क्षण, सो जाँऊ सो जाँऊ, सो, ये सो गया ये जो क्षण है प्रवेश का समय वो सबसे बड़ा सुख है इतना बड़ा सुख है की माँ है बाप है बेटा है सब कुछ है सब प्यार करता है या दुश्मनी करते हैं या मर रहे हैं या जी रहे हैं सब खत्म
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शास्त्रों वेदों ने मेन रीजन को पकड़ा की बस कामना छोड़ दो और कुछ मत छोड़ो क्योंकि उसके द्वारा ही सब दोष उत्पन्न होते हैं वे अपने आप छूट जाएँगे
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ये कामना जो है बस यही बंधन है यही दुःख है यही सब कुछ है
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कामनाओं को छोड़ो ये शत्रु है समस्त दोषों की जननी, इनको छोड़ो नहीं तो तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी अशांति सदा रहेगी वो नहीं जाएगी
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कामनाओं का छोड़ना किसी के लिए भी सम्भव नहीं माया बद्ध, मायातीत महापुरुष, मायाधीश भगवान भी नहीं छोड़ सकता
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1 क्षण को भी कोई अकर्मा नहीं रह सकता
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काम क्रोध लोग मोह ये सब छोड़ दो क्योंकि इसी से समस्त दुखों की उत्पत्ति होती है
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कामना समस्त मानसिक दुखों(लोभ क्रोध ईर्ष्या द्वेष) की जननी है
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अनंत कोटि ब्रह्माण्डात्मक यावन्मात्र माया का राज्य है 5 ज्ञानेंद्रियां का विषय है, प्रत्येक इंद्रिय की कामना का ये सम्पूर्ण जगत विषय है
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ये इंद्रियां देखने में छोटी हैं लेकिन अनंत ब्रह्मांड समा जाए तब भी इनका पेट नहीं भरता, इतना बड़ा पेट हैै
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5 इंद्रियों की कामनाएं(शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) संसार संबंधी हमको अनादिकाल से घेरे हुए है
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जिसका जहाँ अटैचमेंट/आसक्ति/लगाव है उसी की कामना पैदा होती है
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कामना छोड़ दे ये केहना गलत, आसक्ति छोड़ दे, संग छोड़ दे, अटैचमेंट छोड़ दे तो कामना अपने आप खत्म हो जाएगी
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हम किसी अटैचमेंट को डिटेचमेंट में जब चाहे बदल ले, जैस शादी के बाद कोई लड़की एकदम ससुराल के समान को अपना मानती है, मायके के समान से डीटैचमेंट
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बहुत सी चीजें तो पहले से अटैचमेंट के कारण है और बहुत में हम वर्तमान में अटैचमेंट करते हैं
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वर्तमान में हमारा किसी में अटैचमेंट क्यों होता है क्योंकि हम आनन्द/भगवान के अंश हैं, आनन्द चाहना हमारा नेचर है
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आनंद लबालब भरा है इस विश्व में, हमारे ऊपर माया का आवरण है इसलिए अनुभव में नहीं आता, महापुराषों के अनुभव में आता है
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हमारी जबान में पित्त का रोग है मीठी चीज कड़वी लगे इसमें वस्तु का क्या दोष है, अगर हम शुद्ध हो जाए तो शुद्ध वस्तु को ग्रहण करेंगे
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आनंद के अंश होने के कारण हमारा नेचर है आनंद की कामना ये तब तक बनाते रहना जब तक दिव्यानंद अनंत नित्य चेतन आनंद न मील जाए
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बच्चे खत्म भी हो जाए तो माँ फिर बच्चे पैदा करेगी, ये कामना भीतर है तो फिर सब मानसिक दोषों से बच ही नहीं सकते
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आनंद की कामना मिटाने की शक्ति न मायाधीन जीव में है न मायातीत महापुरुष में है न मायाधीश भगवान में है
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कामना आनंद की तो हैं लेकिन एरिया 2 है 1 मायिक जगत की कामना 1 ईश्वरीय जगत की कामना
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संसार में जिस प्रकार का प्यार/अटैचमेंट है घोर संसारी का वैसे ही महापुरुषों का भगवान में प्यार है
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भगवान/आनंद के मिलन का विरह जब बढ़ता गया बढ़ता गया तो अंतिम अवस्था पहुँचने पर वो अमरत्व/भगवत प्राप्ति कर लेता है
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शास्त्र वेद कह रहे हैं कि संसारी कामना को छोड़ना है आपको, क्यों ? इसलिए की तुम्हारी जो आनंद की कामना है वो संसार में हल नहीं होगी
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भगवत प्राप्ति के पूर्व कोई जीव दूसरे की सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता
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भगवत प्राप्ति के बाद कोई अपने सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता
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संसार में कोई व्यक्ति किसी के लिए कुछ सोचे तो उसके आगे वो हमारे लिए ये करेगा, ये सोचेगा तब ऐसा सोचेगा
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संसार में जितनी भी कामना हम करते हैं अपने सुख के लिए करते हैं लेकिन हम ये नहीं समझते कि इन वस्तुओं से हमको सुख मिलेगा या नहीं
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संसारी वस्तुओं से सुख नहीं मिलेगा ये इसलिए नहीं समझते क्योंकि ‘विपर्ययोऽस्मृति’ हम लोगों ने अपने आप को भुला दिया, शरीर मान लिया
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तुम्हारी बुद्धि, तुम्हारा मन, तुम्हारी इन्द्रियां, तुम्हारा शरीर ये तुम्हारा है तुम नहीं है जो तुम्हारा है वो तुम नहीं हो सकता वो तुम का है
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वो तुम क्या है, वो ‘मैं’ क्या है ? इस पर हमने कभी ध्यान नहीं दिया
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तुमने अभी अपने आप को तो जाना नहीं दुनिया भर की नॉलेज प्राप्त करने का ढिंढोरा पीट रहे हो
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जब भगवान कृपा करता है तो संसार छीन लेता है
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हम तो अपनी बुद्धि के level के आगे की बात समझना ही नहीं चाहते हमारी बुद्धि का जो निश्चय है वही सही है
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अपनी आत्मा का जो सुख है उस सुख के पाने के पहले आत्मा को समझना आवश्यक था वो हमने नहीं समझा वहाँ गलती कर गए
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अपने को शरीर मान लिया, कभी इंद्रियां मान लिया, कभी मन मान लिया, कभी बुद्धि मान लिया
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जब ‘मैं’ ही हम नहीं समझ पाये तो ‘मैं’ का विषय क्या है ये कैसे समझेंगे, जैसे आँख पंच महाभूत की इसका विषय केवल रूप
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पंच महाभूत के कान और आँख फिर भी अलग अलग विषय दोनों का, आत्मा तो दिव्य है भगवान का अंश है उसका सब्जेक्ट प्राकृत जगत कैसे होगा गधे की अकल से सोचो
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आत्मा का सब्जेक्ट तो आत्मा का अंशी भगवान होगा, कोई अंश अंशी को पाकर परिपूर्ण होगा शांत होगा, जैसे नदी समुद्र में जाके
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हमने जो मेन गलती की, कि ‘मैं’ आत्मा हूँ इस बात को हम लोग भूल गए
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जब आत्मा को शरीर माना तो 50 बिमारी इकट्ठी हो गई, हम पुरुष हैं काले हैं, मराठी हैं, ग्रेजुएट हैं
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तुम तो आत्मा हो परमात्मा के अंश हो
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जब तक हम ‘अपने’ आप को नहीं समझेंगे तब तक अपना आनन्द क्या है ये समझ में नहीं आएगा
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जब अपना आनंद समझ में नहीं आएगा तो अपने आनंद की कामना कैसे करेंगे
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अगर रसगुल्ले में 4 आने मात्रा का आनंद है तो हर रसगुल्ले में मिलना चाहिए उतना, पहले में अधिक आनंद आया, दूसरे में और कम, तीसरे में और कम, आठवें में आनंद समाप्त,नौवा खिलाया तो उल्टी शुरू हो गई
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अगर रसगुल्ले में आनंद है तो हमेशा मिलना चाहिए, तुम भूखे हो, हाँ जी लेकिन मेरा बेटा मर गया अभी क्या रसगुल्ले भाएगा
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1 वस्तु से सबको आनंद मिले तब तो हम मान ले की उसमें आनंद है, 1 आदमी है वो मर गया, उसकी बीवी को घोर दुख हुआ, पड़ोसी को न दुख हुआ न सुख हुआ, उसका दुश्मन खुश हुआ, अगर उसमें खुश होता तो सबको मिलना था, उसमें सुख कहाँ रहा भ्रम है धोखा है
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हमारी जितनी भी कामनाएं हैं संसार सम्बन्धी वो इसीलिए निंदनीय हैं की वो मटीरियल है प्राकृत है नश्वर जगत की है अनित्य जगत की हैं हम नित्यानंद चाहते हैं प्लस जिसके आगे कोई आनंद न हो
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हमको संसार चाहिए तुमको मोक्ष, 1 तो बंधन मांगता है, 1 मोक्ष मांगता है, दोनों बीमार है निष्काम नहीं है इन दोनों में कोई
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श्याम सुंदर के सुख के लिए उनकी सेवा चाहता है ये निष्काम है केवल बस
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ज्यों ज्यों भाव भक्ति में आगे बढ़ता है त्यों त्यों इसका 1 दिव्य देह निर्माण होता है भीतर भीतर और दिव्य इंद्रियाँ वो स्वरूप शक्ति के द्वारा
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भक्ति स्वरूप शक्तिमती है इसलिए जितनी जितनी भक्ति बढ़ती जाएगी उतनी उतनी स्वरुप शक्ति मिलती जाएगी उतनी उतनी ये दिव्यता शरीर में भी इंद्रियों में भी मन में भी बुद्धि में भी होती जाएगी
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जब आपकी भक्ति परिपूर्ण हो जाएगी तो ये इंद्रिय मन बुद्धि सब आपके दिव्य हो जायेंगे स्वरूप शक्ति संपन्न हो जायेंगे
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योगमाया की शक्ति में ये कमाल है की अनंत आनंद को बांध कर समेट ले कोई जान न सके
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श्रीकृष्ण की सेवा ही अपना लक्ष्य रखना, अपने आनंद की कामना न होना ये निष्काम है
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गोपियों का प्रेम माने निष्काम प्रेम जिसमें ये 8 प्रकार की कामनाएं न हो वो काम रहित हैं उसके काम श्याम सुंदर है अपनी कामना नही है
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1 तो कामना छोड़ कर भगवान की उपासना करो और 1 उपासना करने से कामना छूटेंगी ये 2 विरोधी बात आ गई
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जब तक भुक्ति मुक्ति ये 2 कामनाएं आपके अंदर रहेंगी तब तक भक्ति महादेवी का प्राकट्य नहीं होगा
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कामना करने का जो मैटर है उपकरण है वही है 5 ज्ञानेंद्रियां, मन के द्वारा
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भगवत सम्बन्धी कामना का नाम उपासना
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हमारा अंतःकरण 1 मात्र आनंद चाहता है उस आनंद को पाने के लिए कामनाएं बनाता है
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स यथा कामो भवति तत् क्रतुर् भवति यत् क्रतुर् भवति तत् कर्म कुरुते यत् कर्म कुरुते तद् अभिसंपद्यते
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अगर हमारी कामना कमजोर है तो संकल्प कमजोर होगा तो कर्म कमजोर होगा तो फिर हम कमजोर बनेंगे
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अगर हमारी कामना बलवती है तो संकल्प बलवान होगा तो कर्म भी बलवान होगा और परिणाम भी बलवान होगा
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अगर सांसारिक विषयों में चिंतन द्वारा अटैचमेंट करोगे तो संसार मिल जाएगा उसका जो परिणाम होगा, त्रिगुण त्रिकर्म त्रिदोश पंचक्लेश पंचकोष 84 लाख योनियों का आवागमन
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अगर भगवान का संकल्प करोगे की भगवान में सुख है तो भगवान में आसक्ति हो जाएगी
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भगवान में सुख हैं डिसीजन को बार बार चिंतन के रिवीजन से हम बढ़ाते नहीं आगे, वो कमजोर है बेचारा
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ये मायिक डिसीजन हमारा बड़ा बलवान है संसार में सुख हैं येह चिंतन हमने अनंत जन्म कर रखा है वो बहुत बलवान है
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अगर भगवान संबंधी कामना होगी तो भी सारे दोष क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या द्वेष रहेंगे
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प्रेम बढ़ता बढ़ता अनंत काल तक अपूर्ण रहता है वही प्यास बनी रहेगी ऐसा नहीं होगा की तृप्ति हो गयी बस छुट्टी वो रस समाप्त हो जाएगा फिर तो, तो पत्थर हो गया
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जिस लड़की के लिए उस लड़के ने दूर से, खिड़की से देख कर के इतना बड़ा सुख पाया था जब ब्याह हो गया वो लड़की घर में आ गई और 10, 20 महीना रही तो 1 दिन कहता है तुम्हारी इस शकल से नफरत है हमको
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प्रतिक्षण घटमान संसार का प्यार और प्रतिक्षण वर्धमान ईश्वरी प्यार
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कामना करने वाला मन
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हमारा मन संसार में बंध चुका है, अगर हमारा मन न्यूट्रल होता न संसार की कामना है न भगवान की कामना है और 1 जगतगुरु के बाप आए उन्होंने कहा भगवान की कामना बनाओ ये बनाया इमीडीएटली काम बन गया
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चूँकि संसार में अटैचमेंट हो चुका है और साधारण नहीं अनंत जन्मों की प्रैक्टिस का अटैचमेंट है
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कामनाओं की जननी माया है और जब तक माया है तब तक मायिक जगत की कामना बनी रहेगी ये अकाट्य सिद्धांत हैं
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इंद्रियों पर कंट्रोल कर लेने वाला भी कामनाओं से रहित नहीं रह सकता
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अगर किसी वस्तु से किसी को श्रद्धा हुई है तो वो वस्तु का जब निगेटिव मिलेगा, विरोध मिलेगा तो नास्तिक हो जाएगा
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हमारा मन संसार में अनादिकाल से बद्ध है और बहुत गहराई से अटैचड है
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प्रथम स्कंध के दूसरे अध्याय का छठा श्लोक सबसे इम्पोर्ट श्लोक सारी भागवत
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दूसरे अध्याय के छठे श्लोक से लेकर उनतीसवें श्लोक तक 24 श्लोक हुए ये सब के सब अनंत कोटि वेद के बराबर है सब कुछ भर दिया गया है इसमें
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भक्ति में 2 ही बाधा हो सकती है 1 सुख 1 दुख
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सुख की बाधा ऐसे की अगर आपको कोई सुख मिल रहा है और उससे बड़ा सुख मिला तो वो छोटा सुख शिथिल हो जाएगा फिर उसमें आपको सुख नहीं मिलेगा
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किसी को साइकिल मिली खुश हो रहा है अब पैसा इकट्ठा करके मोटरसाइकिल मिल गई अब साइकिल पर नहीं चलता अब खराब लगता है उसको, अब कार का पैसा भी इकट्ठा हो गया कार ले लिया अब मोटर साइकिल नई अच्छी लगती धक्के लगते हैं उसमें, अब कार भी आ गई तो कार में ये ambassador कार ठीक नहीं है impala होनी चाहिए इसमें धक्के लगते हैं यानी बड़े सुख के पाने पर छोटा सुख शिथिल हो जाता है
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बड़े सुख के पाने पर छोटा सुख शिथिल हो जाता है ये बाधा आ गई
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किसी को दुःख मिल रहा है उससे बड़ा दुःख मिला तो छोटा दुख शिथिल हो गया वो बड़े वाले ने छोटे पर अधिकार कर लिया
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भक्ति से बड़ा कोई सुख इसलिए उसमें सुख की बाधा कभी नहीं आ आ सकती
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भगवान के विमुख होने पर जो दुख मिलता है उससे बड़ा कोई दुख का आवरण भी कभी नहीं हो सकता
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सुख दुख दोनों बाधाएं भक्ति में नहीं आ सकती इसलिए इसको अप्रतिहता भक्ति कहते हैं
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अगर आपने कामना बनाया सहैतुकी कर दिया भक्ति को तो फिर सब विघ्न बाधाएं आयेंगी
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अहेतुकी + अप्रतिहता भक्ति हो श्रीकृष्ण में इससे आगे कोई धर्म नहीं और इसके आलवा कोई धर्म ग्राह्य नहीं
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सब मायिक धर्म अकल्याण कृत हैं सात्विक धर्म हो तो, राजस धर्म हो तो, तामस धर्म हो तो
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ये गुणातीत धर्म है निर्गुण धर्म हैं इसलिए आपको माया से परे होने के लिए इसी धर्म को धारण करना होगा इसके अतिरिक्त सब धर्म आपको धोखा देंगे
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धर्म ने स्वर्ग पहुँचा दिया बेवकूफ बना दिया और धर्म समाप्त हो गया क्योंकि स्वर्ग आपने भोग लिया अब आप कहें कि मैंने धर्म किया था वो तो भोग लिया आपने
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भोग किया हुआ मायिक सुख बाद में काम नहीं देता वो भूल जाता है
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धर्म भी गया धर्म का फल स्वर्ग भी गया देखो धोखा दे दिया इस धर्म ने
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हम जो चाहते हैं परमानंद दिव्यानंद अनंत आनंद, अनंतकाल के लिए ये हमारा जो नेचर है
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वोह अनंत आनंद कैसे मिलेगा ? वो और किसी धर्म से नहीं मिलेगा वो श्रीकृष्ण को धारण करने से ही मिलेगा
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मैं अपने को मनुष्य समझता हूँ ब्राह्मण समझता हूँ विद्वान समझता हूँ मुर्ख समझता हूँ ये सब धोखा भ्रम मैं ब्रह्म हूँ ये ज्ञान यही ज्ञान रहेगा अंत तक बदलेगा नहीं
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वैराग्य की जो अंतिम सीमा है वो निवृत्ति मार्ग का अंतिम लक्ष्य है
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अनंत जन्मों के अनंत पाप पुण्य संचित रूप में प्रत्येक जीव के साथ सम्बद्ध है
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उनके परिणाम में उनको केवल वही तपस्या ही मिलेगी कोई फल नहीं मिलने वाला है घोर विरक्त को भी
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अनासंग वैराग्य/भक्ति रहित जो है वो अनंतकाल तक कोई किए जाए न माया निवृत्ति होगी न मुक्ति होगी न परमानंद मिलेगा
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ये माया इतनी बलवती है की और कोई धर्म धारण करने से हमारा श्रेय हमारा लक्ष्य हमारा परमानंद प्राप्त ही नहीं हो सकता
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ये धर्म धारण करने में ये कामना अर्चन डाल रही है हम भगवान को नहीं धारण करते क्यों ? इसलिए की संसार को धारण किए हैं अनादिकाल से
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जब तक ये कामनाएं हमारा पीछा नहीं छोड़ेंगी तब तक हम भगवान के सन्मुख कैसे होंगे
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हमको बीमारी है क्या ? भगवान के विमुख हो गया जीव
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भगवान सदा जीव के पीछे है निरंतर
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जो बुद्धि से परे वाली बात होती है वो शास्त्र वेद से समझी जाती है इस बात को जिसने 'मान' लिया उसकी सब समस्याएँ हल हो गई
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जबरदस्ती हम लोग अपने अपने पोजीशन को अप समझते हैं
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हालत इतनी फटीचर है की 1 1 सेकंड हम कामनाओं के, क्रोध के, लोभ के, मोह के गुलाम है और पता नहीं क्या पोजिशन समझते है अपनी पोजीशन को क्या समझ रखा है हमने की उसके पीछे परेशान है इंसल्ट न हो जाए हमारी इंसल्ट 84 लाख में 1 भगवान की नौकरानी माया घुमा रही है तो इंसल्ट नहीं हो रही ही, अरे इससे बड़ी क्या इंसल्ट होगी
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कोई पूछे आप कौन हैं ? भगवान के बेटे और आप कहाँ कहाँ जा रहे हैं? ये कुत्ते बिल्ली गधे की योनियों में
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जब जीव को अपने स्वरूप की अस्फूर्ति हो गई अज्ञान हो गया अपने स्वरूप को भूल गया तो भगवान से विमुख हो गया और भगवान से विमुख होने पर माया ने धर दबाया
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माया कितनी बलवती है ? जितने बलवान भगवान
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कोई भी तपस्चर्या यज्ञ योग दान कोई लिमिटेड पावर लिमिटेड पावर सीमित शक्ति उस असीम शक्तिमान भगवान की शक्ति को अपने से पृथक नहीं कर सकता, असंभव
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भगवान की पावर के बिना और कोई पावर माया पर विजय नहीं प्राप्त कर सकती
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बिना माया पर विजय प्राप्त किए मायिक कामनाओं का अत्यंताभाव भी कोई नहीं कर सकता
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ये सारी बीमारी का कारण क्या है ? भगवान की विस्मृति, विस्मृति
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इसकी दवा क्या है ? भगवान की स्मृति
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ये माया कैसे जाए ? भगवान के सन्मुख हो जाए जो विमुख है उसका इलाज सन्मुख
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सारी बीमारी का जो कारण है भगवान से विमुख होना इसलिए अपने स्वरूप को भूलना, भगवान के सन्मुख हो जाओ अपने स्वरूप का स्फुरण हो गया
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हम अनादिकाल से अनंतकाल तक श्रीकृष्ण के नित्य दास है बस, जहाँ ये फीलिंग ठीक ठीक सेंट परसेंट हो गई वहीं भगवत कृपा गुरु कृपा वहीं सब कुछ, जो कुछ आपको प्राप्तव्य है मिल जाएगा
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अमृत स्वरूपा तो केवल भक्ति है
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भक्ति से भक्ति मिली तो भक्ति किया
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सब कुछ भक्ति से मिलेगा
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कोई भी वस्तु जो आप और चाहते है वो उसी के लिए भ्रम वस आनन्द चाहिए
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ये जो आनंद की कामना है ये तो सत्य है किन्तु जहाँ आनंद है वहाँ हम कामना नहीं करते इसलिए फल असत्य मिलता है
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जीव भगवान को सरेंडर करता है तो भगवान उसको असली रूप दे देते हैं असली माने जो उसका वास्तविक ओरिजनल रूप है
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मुक्ति भक्ति के द्वारा ‘ही’ होगी, ‘भी’ नहीं
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भगवान और महापुरुष के कार्यों को कोई नहीं समझ सकता किसी की भी बुद्धि अगर लगी तो उसने मौत को बुला लिया अब वो नहीं बच सकता
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अहैतुकी की भक्ति अप्रतिहता भक्ति श्रीकृष्ण की बस यही 1 पर धर्म है यानी ग्राह्य है धारण करने योग्य है
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पांचों इंद्रियों के विषय इन्द्रियों के माध्यम से मन या बिना इन्द्रियों के(स्वप्न अवस्था में) ग्रहण करता है
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मन ‘ही’ सुनता, सुँघाता, देखता, रस लेता, स्पर्श करता है
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मन में आँख है मन में कान है मन में नाक है मन में रसना है मन में त्वचा है
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इंद्रियां स्वयं अनुभव करता नहीं अनुभव करता केवल मन हुआ करता है
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मन ही प्रत्येक वर्क का वर्कर है
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मन को माइनस करके हमने इन्द्रियों के द्वारा स्पिरिचुअल उपासना की सब एक्टिंग लिखा गया, सब फिजिकल ड्रिल लिखा गया उपासना लिखी ही नई गई ईश्वर के यहां
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कान तो बहुत सुन चुके मन सुने तब मन माने तब मन उपासना प्रारंभ करे तो हमारा काम बने
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तुम्हारी गंदगी जो है वो अंतःकरण में है उसकी शुद्धि करना है
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सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते
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मन कोई चीज है कोई स्थूल पदार्थ है क्या ? नहीं सूक्ष्म है, सूक्ष्म होता है मन
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मन में पाप पुण्य रहा करता है
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जहाँ से आइडियास पैदा होते है ऐसी मशीन का नाम मन अंतःकरण
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अंतःकरण में पाप पुन्य है अंतःकरण से विचार पैदा होते हैं अच्छे बुरे और अंतःकरण का टच नहीं हुआ स्पिरिचुअल पर्सनालिटी में
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वर्कर केवल मन है इंद्रियाँ नहीं
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उपासना करने वाला मन, प्यार करने वाला मन दुश्मनी करने वाला मन, विरक्त होगा तो मन
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करता मन है, मन ही सुनता है मन ही प्रत्येक वर्क का वर्कर है
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सारे बुराइयों की जड़ 4 है काम क्रोध लोभ अहंकार
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काम को तो, लोभ मोह को तो छोड़ना चाहिए आप कहते हैं ये वाक्य ही बोलना गलत है हाँ बिल्कुल गलत है, छूटेंगे नहीं ये, छूट नहीं सकते ये, जा नहीं सकते
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लोभ क्यों पैदा होता है क्रोध को पैदा होता है इन सब रीजन समझो, तब मालूम पड़ेगा हाँ ये तो नहीं छूट सकता, इम्पॉसिबल
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लोभ कैसे पैदा होता है ? किसी कामना की पूर्ति से लोभ पैदा होता है
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जो प्रति लाभ लोभ अधिकाई
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इच्छा पूर्ति न हुई अगर तो ? तो क्रोध आया
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5 प्रकार का काम होता है देखने की इच्छा, सुनने की इच्छा, सूंघने की इच्छा इन्ही पांचों इच्छाओं का नाम संस्कृत में काम कहा गया
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कामना छोड़ो ये भी कहना गलत अब ये पता लगाओ कामना कैसे पैदा हुआ करती है कामना का रीजन क्या है
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किसी भी कामना का रीजन 1, जिस व्यक्ति की जिस व्यक्ति की जिस वस्तु में आसक्ति होती है अटैचमेंट होता है उस व्यक्ति को उसी की कामना पैदा होती है
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जिसका जिसने अटैचमेंट है उसी की कामना पैदा होती है
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जहाँ हमारा प्यार है बस उसी की कामना होती है
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हमारी आसक्ति जहाँ होती है उसी की कामना पैदा होती है
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यदि कहीं अटैचमेंट न हो तो कोई बीमारी पास न आवे अपने
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जिसका जहाँ अटैचमेंट है उसी की कामना पैदा होती है
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जहाँ अटैचमेंट है उसके लिए आप परेशान हुए
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यदि कहीं आसक्ति न हो तो सब बीमारी चली जाए ये रीजन मिला, न ये भी गलत क्योंकि आसक्ति तो हो चुकी है
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पता लगाना पड़ेगा आसक्ति क्यूँ होती है कहीं पर
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जिस सब्जेक्ट में, जिस वस्तु में, जिस व्यक्ति में बार बार सुख का चिंतन करोगे उसी में अटैचमेंट हो जाएगा
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रिवीजन से अटैचमेंट, इससे सुख मिलेगा, इससे सुख मिलेगा ये हमारा है ये हमारा है बार बार चिंतन करने से अटैचमेंट हो जाता है
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बहुत बड़ी शक्ति है चिंतन में, भगवत प्राप्ति चिंतन से, नरक चिंतन से, स्वर्ग चिंतन से
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सब चीज चिंतन से मिलती केवल मन के चिंतन से
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अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु में बार बार सुख का चिंतन न करें तो सारी बीमारी चली जाए
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संसार में कहीं सुख है ही नहीं क्यों चिंतन करे दिमाग खराब है
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यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु में सुख न माने तो अटैचमेंट न हो आसक्ति न हो
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जब आसक्ति न हो तो उसकी कामना न पैदा हो
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जब कामना न पैदा हो तो उसकी पूर्ति अपूर्ति का क्वेश्चन न पैदा हो तो लोभ क्रोध आदि आवें ही न
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जिसकी जितनी लिमिट की आसक्ति है उतनी लिमिट का दुःख उसको वियोग में होगा
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यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु में बार बार सुख का चिंतन न करे तो सारी बीमारियाँ समाप्त हो जाए
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कोई व्यक्ति किसी वस्तु में क्यों सुख का चिंतन करता है क्या रीजन है ये अपने बस में है क्या किसी वस्तु में सुख न माने ? ये कोई अपने हाथ में है ? न अपने हाथ में नहीं, क्यों ? इसलिए की हम ईश्वर के अंश है ईश्वर आनंद हैं
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भगवान ही आनंद है आनंद ही भगवान है और जीव उसका अंश है इसलिए प्रत्येक जीव आनंद ही चाहता है
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चूँकि आनंद प्राप्ति हमारा नेचर है अपरिवर्तनीय नेचर इसलिए येह जा नहीं सकता इसलिए हम कहीं न कहीं आनंद मानेंगे, 'मानना' पड़ेगा कहीं न कहीं
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इस आदमी में नहीं मानेंगे इसमें मानेंगे, इसमें नहीं मानेंगे इसमें मानेंगे, इस सामान में नहीं मानेंगे इस सामान में मानेंगे, कहीं न कहीं आनंद की रिसर्च करनी पड़ेगी क्योंकि हम भूखे हैं
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जैसे पेट का भूखा खाये बिना चैन से नहीं रह सकता वैसे आनंद का भूखा 1 जीवात्मा 1 क्षण को चैन से नहीं रेह सकता
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आँख बंद है आँख खोला क्यों ? आनंद के लिए, देखा, ये चारो तरफ क्यों देख रहे हो ? आनंद ढूंढ रहे हैं आनंद, सो गया आनंद के लिए, जागा आनंद के लिए, बैठा आनंद के लिए, उठा आनंद के लिए, रोया आनंद के लिए
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दुःख के लिए कोई नहीं रोता सब आनंद के लिए रोते है, रोने से आनंद मिलता है
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हँसने में आनंद मिलता है ? हाँ मिलता है, फिर हँसना बंद क्यों कर देते हैं, अजी कितनी देर हँस, क्यों आनंद से नफरत हो जाती है क्या ? अगर हँसने में आनंद है तो हँसते जाओ न लगातार, नहीं जी वो कुछ देर मिलता है फिर तो हँसने से आनंद नहीं मिलता
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क्रियाएं विरोधी हो रही है लेकिन वही भूख है उसको आनंद आनंद आनंद, कहाँ मिले, कैसे मिले उल्टा पल्टा सब काम कर रहा है बिचारा
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जहाँ आनंद माना वंही अटैचमेंट हुआ उसी की कामना पैदा हुए उसी के लिए लोभ क्रोध सब आया
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अगर किसी को स्पिरिचुअल हैपीनस दिव्यानंद अनलिमिटेड आनंद जो हम चाहते हैं वो मिल जाए तो कहीं आनंद न माने, न कहीं आसक्ति हो न कहीं कामना पैदा हो, कोई बीमारी न पैदा हो
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जब तक आनंद नहीं मिलेगा तब तक जीव कहीं न कहीं आनंद को मानेगा और जहाँ मानेगा वही अटैचमेंट होगा जहाँ अटैचमेंट होगा उसी की कामना पैदा होगी
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मन बड़ा बदमाश है अगर कहीं साइन बोर्ड लगा दो यहाँ पेशाब करना मना है तो लोफर बच्चे वही करेंगे और जगह छोड़ देंगे वही करेंगे
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प्रिय के प्रति जिससे आपका प्यार है और कोई कहे भुला दो उसको मन से, किसको ? उसको, उसको किसको ? उसको, याद आई और प्यार बढ़ेगा इसकी दवाई थोड़ी है ये तो उल्टा इलाज कर रहे हैं आप
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आनंद की भूख हमको नैचुरल है और प्रति सेकंड है ये भी कमाल और कहीं न कहीं हम आनंद मानेंगे, जो देखेंगे संसार में वही तो मानेंगे और क्या करेंगे उसके आगे कहाँ जायेंगे, ये दोस्त अच्छा है ये सहेली बनाने लायक है बड़ी अच्छी है सहेली, अच्छा अच्छी है जब उसकी कोई गड़बड़ बात आउट हुई, अरे ये तो खराब निकली, वो अच्छी है, बस यहाँ वहाँ 10 जगह रिहर्सल किया जीवन समाप्त हो गया, जजमेंट ये भी नही दे पाये मरते मरते की ये सब के सब डेंजरस है
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डायबिटीज के मरीज के लिए सब मिठाई वर्जित है, हमने तो रिसर्च अभी तिने चार में किया, रसगुल्ला खाया डायबिटीज बढ़ गया, पेड़ा खाया डायबिटीज बढ़ गया, बर्फी खाया डायबिटीज बढ़ गया और मर गए यही 3 खराब है बाकी मिठाई अच्छी होगी ये सोच के मरा, अरे बेवकूफ अब भी तुझे ज्ञान नहीं हुआ ये सारी मिठाई खतरनाक है इस मर्ज के लिए
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जहाँ तक माया का आधिपत्य है वहाँ तक आनंद की कल्पना करना बार बार आनंद का चिंतन करना अटैचमेंट करना ये सब डेंजरस
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जब तक हमको परमानंद की प्राप्ति न हो जाएगी तब तक हम किसी भी प्रकार किसी वस्तु में आनंद 'मानना' न बंद करेंगे अतएव ये सारी बीमारी सदा बनी रहेगी अतएव ये कहना कि काम छोड़ो क्रोध छोड़ो ये बकवास नहीं तो और क्या है
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जैसे भगवान की पावर अनंत है ऐसे माया की पावर भी अनंत है
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राम भजन बिनु मिटहिं न कामा, थल बिहीन तरु कबहुँ की जामा
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जब भगवान से प्रेम होगा तब ये सब कामनाएं छूटेंगी, ये दोष छूटेंगे
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जब सब कामनाएं चली जाएंगी तब भगवान से प्रेम होगा
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बिना कामना छोड़े भगवान की उपासना असम्भव और बिना भगवान की उपासना के कामना छोड़ना असम्भव
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प्रत्येक कर्म का कर्ता मन है अर्थात द्रष्टा, श्रोता, ग्राहता, स्प्रष्टा, मन्ता, बोद्धा
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वास्तव में कर्म का कर्ता केवल मन ही है
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बंधन और मोक्ष का रीजन केवल मन को बताया गया है
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सुनने का मतलब है 'मानना', जानना मात्र नहीं
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जब मान लोगे तो करोगे इसमें कोई 2 राय नहीं लेकिन 'मानना' सबसे इम्पोर्टेंट है
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कामनाओं से ही क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य ईर्ष्या द्वेष पाखंड़ आदि की उत्पत्ति होती है इन सब दोषों की जननी कामना है
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भगवान की कामना आवे तो संसार की कामना जाए
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संसार की कामना जाए तो भगवान की कामना आवे
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हमारी वास्तविक नैचुरल स्पिरिचुअल कामना तो आनंद की है संसार की कामना तो हमने अज्ञान से बना ली
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अपने को देह मान लिया तो देह मटीरियल है पंच महाभूत का है जगत पंच महाभूत का है ये दोनों सजातीय हैं
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ये इन्द्रियों के सुखों के लिए संसार की ओर हमने भागना प्रारम्भ कर दिया, उसकी कामना बना ली
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इसी रोग में अनादिकाल से हम बद्ध हैं
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मन को ही उपासना करनी है
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तत्वज्ञान सदा साथ रहे नामापराध न होने पाये
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तत्वज्ञान परमावश्यक है तत्वज्ञान के बिना गति नहीं हो सकती
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सदा आप लोग जो कुछ सुनते हैं उसको मनन कीजिये, मनन कीजिये
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साधना का मतलब तुम याद करो
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ये समझना गलत है की बस मैं अब समझ गया पक्का हो गया ये सब भूल जाएगा
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बिना मनन के श्रवण काम नहीं कर सकता
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संसार सम्बन्धी कामना बद्धमूल है
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उसके मिटाने का, हटाने का प्रयत्न करो ऐसा भूलकर न करना कभी हमें क्रोध न आवे, हमें ईर्ष्या न आवे
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जितना याद करोगे उसको भुलाने के लिए उतनी अधिक उसकी याद आएगी
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काम क्रोध मद लोभ तजहु जनि भजहु तिनहिं दिन रात उनका भजन करना है तजना नहीं है ये अनोखी बात है न
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तत्वज्ञान प्राप्त करके ये समझो की तुम जो आनंद चाहते हो वोह इसमें हो सकता है क्या ? अरे मिला तो है ही नहीं ये तो तुम्हारा अनुभव कह रहा है
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संसार में हो सकता है वो आनंद क्या ये समझो गहराई से समझो तुम आत्मा हो, दिव्य पर्सनैलिटी हो और संसार मटीरियल है माइक है प्राकृत है पंच भूत का है तो इंद्रियां तो पंच महाभूत की है तुम्हारी
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तुम तो अपना आनंद चाहते हो, अपना अपना माने मैं का और मैं आत्मा है और मैं दिव्य तत्व है तो मैं का जो सुख होगा वो भी दिव्य होगा तो संसार से कैसे मिलेगा
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लॉजिक भी, एक्सपीरियंस कर के तो हजार बार देख चुके है, हाँ, उसी माँ से प्यार हजार बार किया, उसी बाप से, उसी बीवी से, उसी बेटे से, उसी बाप सब से किया
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मटेरियल सामानों से भी किया सैकड़ों बार रसगुल्ले खाए, कुछ अनुभव हुआ ? अनुभव तो हुआ जिस समय खाते हैं उस समय आनंद आता है थोड़ा सा जरुर लेकिन वो फिर जब पेट भर जाता है तो फिर उससे दुःख मिलने लगता है और आनंद भी प्रतिक्षण घटता जाता है तो फिर उसमें आनंद कहाँ है कैसे हो सकता है ?
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अरबपतियों से जरा पूछ लो सुख मिला तुमको, अजी क्या पूछे दिख तो रहा है 50 कारे हैं 100 फ्लैट है, अरे ये कार और फ्लैट देखते हो अरे उसके भीतर देखो
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तत्वज्ञान गंभीरता पूर्वक मस्तिष्क में धारण किया जाए तब मन को बुद्धि को यानि अंतःकरण को ये रियलाइज करने का चांस मिलेगा, हाँ हाँ बात सब गलत कर रहे हैं यहाँ तो आनंद है ही नहीं, ये धोखा है
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1 क्षण को मन अकरमा नहीं रह सकता मन चलता रहेगा आप जहाँ चाहें उसको डाइवर्ट कर दे
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आप घुमा सकते हैं बुद्धि के द्वारा मन को लेकिन रोक नहीं सकते वो पेंडिंग नहीं रख सकते मन को
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आपने मन को संसार से हटाया क्यों ? by रीजन यहाँ हमारा आनंद नहीं है मैंने अपने को देह मान लिया था ये भूल है
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हम श्रीकृष्ण दास हैं हमारा आनंद श्रीकृष्ण में है ठीक है बड़े आराम से मन हट जाएगा
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अरे मन को क्या है मन तो इसी संसार में रोज हट रहा है बीबी से बाप से माँ से दिन में 10 बार
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कहाँ गया वो जब विवाह के पहले उसकी आँख 1 बार देख लेने से वैकुण्ठ मिल रहा था अब क्या हो गया, सोचा नहीं क्यों हुआ, क्या हुआ, कैसे हुआ, अरे सोचो मनुष्य हो बुद्धि रखते हो उसका उपयोग करो
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ठीक ठीक तत्वज्ञान संसार का करने से मन संसार से हट जाएगा कोई प्रॉब्लम नहीं कोई भी हटा सकता है रोज हटाते हो, अभ्यास है तुमको
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खाली हटाना व्यर्थ है वो हटाया और तुरंत उसको भगवान का एरिया दिया
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अरे तू क्या चाहता है शब्द स्पर्श रूप रस गंध तो क्या ये घोर नारकी संसार के शब्द स्पर्श रूप रस गंध के लिए व्याकुल है वहाँ का शब्द स्पर्श रूप रस गंध मिलेगा गधे वहाँ का जिसमें अनलिमिटेड हैप्पीनेस है और यहाँ का मिलने में तो 50 बाधाएं हैं और वहाँ कोई बाधा नहीं
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वो तो भुजाओं को फैलाए खड़े है बिचारे अनादिकाल से आजा जीव आजा
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जैसे पैदा होता है बच्चा उसी पोजीशन में आपको फिर जाना है
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मन को संसार से हटाया यानी मन में जो संसार की कामना है उसको मिटाया और तुरंत भगवान की कामना बनाया
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जहाँ मन जाए वहीं श्याम सुंदर को खड़ा करने की 1 बीमारी बना लो अपनी साधना में मन को हटाओ नहीं बीवी क्यों आ गई, बीवी
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जहाँ मन जाए वहाँ श्याम सुन्दर को खड़ा कर दो यानी श्याम सुंदर कह रहे हैं क्यों अब भी बीवी की आँख देखेगा, नहीं महाराज गलती हो गई आदत पड़ गयी थी इसलिए उसका ध्यान आ गया था
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भगवान कह रहे देख मैं सब जगह हूँ तेरी बीवी के रोम रोम में तेरी माँ के रोम रोम में हमेशा व्याप्त वैसे भी हूँ
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केवल रियलाइज करना है फैक्ट को 'मानना' है कल्पना नहीं करना है की श्री हाँ कृष्ण हमारी बीवी की आँख में रहेंगे ऐसी हमारी बीवी महापुरुष है
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वो महापुरुष हो चाहे गधी हो भगवान सब के रोम रोम में व्यापत रहते हैं सर्वव्यापक है
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संसार से हटाया, भगवान में लगाया, अभ्यास के कारण संसार में हट आया, जब हट आया तो घबराया नहीं, जहाँ गया वहीं श्याम सुंदर को खड़ा किया
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संसार के जितने भी खतरनाक सामान आपके सामने थे उन सब में आप श्याम सुन्दर को खड़ा कीजिए तो खतरा ही खत्म हो जाए
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आप उल्टी साधना करते है अगर, क्यों गया वहाँ मन तो क्रोध आया जब क्रोध आया तो मन विछिप्त हुआ
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जब विछुप्त हुआ तो आपको आखिर में यही कहना पड़ेगा हमसे तो ये नहीं होगा फालतू बेगारी करने से क्या फायदा ध्यान बनता नहीं है चलो जी अब उठो, सब बिगड़ गयी बात
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ऐसा गोल्डन चांस पा करके इसको मिस कर दोगे
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कभी करुणा करके मानव देह मिलता है ये हँसी मजाक नहीं है जो आपको मिला हुआ है, इतनी कीमती चीज, ये देव दुर्लभ है
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अगर हम इस ज्ञान प्रधान मानव देह का सदुपयोग न किया भगवत विषय में यूज न किया तो फिर ये चूँकि बुद्धि विशेष है मनुष्य में इसलिए गड़बड़ भी ए वन क्लास की करेगा वो मनुष्य
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हम लोग जो उधार करते हैं सब कुछ जान कर के भी सब भगवत कृपाएं मिल गयी, मानव देह + गुरु + अपना लक्ष्य पाने का साधन समझना
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ये पढ़ना कई प्रकार से हानिकारक है 1 तो शंकाएं बढ़ती जाती है और दूसरे अहंकार बढ़ता जाता है
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अगर कोई महापुरुष हमको मिल गया और उसने बिना परिश्रम के हमको करोड़ो वर्ष की जो हम लेबर के बाद भी न समझ पाते उसने थोड़े में हमको समझा दिया और बुद्धि में बैठ गया, हँ ये बात है बिल्कुल ठीक ये भगवत कृपा सबसे बड़ी अब इसके आगे कोई भगवत कृपा आपके लिए स्पेशल नहीं हो सकती
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भाग्य भाग्य चिल्लाते हैं आप लोग तो इससे बड़ा कोई भाग्य नहीं हो सकता
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ये जरा जरा करते करते तो आपके अनंत जन्म बीत चुके है आगे भी अनंत बीतेंगे लेकिन जरा खत्म नहीं होगा
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आसक्ति सबकी है लेकिन ये मिथ्याभिमान खोपड़ी में रहता है मेरी तो कहीं आसक्ति नहीं है जो कुछ है सब भगवान का है
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हटाया लगाया हट आया, फिर हटाया लगाया हटाया लगाया ये जब लगातार प्रैक्टिस करोगे तो लगने लगेगा अब आई नैचुरलटी पहले प्रैक्टिस फिर नेचुरलिटी
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पहले लगाना पड़ेगा भगवान में बार बार लगाओ लगाओ लगाओ जहाँ संसार में मन जाए श्याम सुंदर को खड़ा करो फिर उधर ले जाओ फिर इधर आ गया फिर वहाँ खड़ा करो ये लगातार युद्ध करना पड़ेगा युद्ध
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जो आनंद सिंधु रस समुद्र है उसमें फिर मन को रस मिलने लगेगा बिना रस मिले तो हम यहाँ देखो दीवाने हो रहे हैं संसार के और वहाँ तो रस भी मिलेगा लेकिन शुरू में तो परिश्रम करना होगा बस उसी से घबरा जाते है हम लोग
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और कौन रास्ता है भगवान के अलावा वही 1 माया का जगत तो वहाँ पेट नहीं भरा न कभी भर सकता है
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हटाया लगाया हट आया तो फिर हटाया लगाया हटाया लगाया तो लगने लगा
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जितने परसेंट लगने लगा उतने परसेंट हटने लगा और यहाँ भी नेचुरलटी आई वैराग्य, नैचुरल वैराग्य हटने लगा
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जब रूचि हो जाएगी भगवान की ओर जितने परसेंट तो अरूची हो जाएगी संसार से उसी को वैराग्य कहते है
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जब 50% आपका भगवान में मन लग जाएगा तो 50% संसार से हट जाएगा अब इसके बाद जब आप मन लगाएंगे भगवान में तो बड़े आराम से लगता चला जाएगा
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उसका नाम लेते इतनी याद आती है की प्राण शरीर से निकल जाना चाहता है
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संसार की कामना हटाओ भगवान की कामना भरो फिर संसार की कामना शुरू प्रारंभ आ जाए बीच में तो फिर हटाओ फिर भगवान की कामना भरो
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अभ्यास करते करते ये संसार की कामना जाएगी भगवान की कामना भर जाएगी
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जब माया का अत्यंताभाव हो जायेगा तो फिर कामना का अत्यंताभाव हो जायेगा
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जब कामना का अत्यंताभाव हो जायेगा तो फिर उसके सारे परिवार वाले भी गए
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भगवान की कामना बनाना है ये पांचों इंद्रियों की कामना जैसे संसार की आपकी बन रही है ऐसे उधर घुमा देना है बस
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संसार की ओर ये जा रहा है मन, आप ले जा रहे हैं क्योंकि आपका डिसीजन है संसार में सुख है
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अब डिसीजन हुआ भगवान में सुख है इधर घुमा लो 1 बार में नहीं घूमता 2 बार में घुमाओ 4 बार में हजार बार में लाख बार में
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घोर से घोर अपढ़ गवांर पापात्माओं ने घुमाया है और भगवत प्राप्त की है
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संसार सम्बन्धी कामना के स्थान पर भगवत सम्बन्धी कामना करोगे तो क्रोध भी आएगा लोभ भी आएगा सब आएंगे ये दोष वहाँ भी
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ये काम क्रोध लोभ कोई भी डेंजर नहीं है इनको गाली मत बको, इनको हटाने की चेस्टा मत करो, इनको रहने दो, बस घुमा दो ईश्वरीय एरिया दे दो
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श्रीकृष्ण सम्बन्धी काम क्रोध लोभ मोह हो जाए ये हमारी पाँचों ज्ञानेंद्रियों की कामना श्याम सुन्दर सम्बन्धी हो जाए बस फिर आप निश्चिंत हैं
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तत्वज्ञान जब तक न होगा तब तक कोई नहीं समझ सकता की इस क्रोध में भी अनंत रस माधुर्य है
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अविद्या ग्रंथी का निर्मूल नाश करना किसके हाथ में है ? न कर्म के हैं न ज्ञान के हैं केवल भक्ति के हाथ में है
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अपवर्ग शब्द का अर्थ ही है भक्ति श्रीकृष्ण में अनुराग हो यही अपवर्ग है
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भक्ति ही मुक्ति है या भक्ति से ही मुक्ति हो सकती है
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जब तक ये त्रिवर्ग और अपवर्ग ये दोनों बीमारियाँ हमारे अंतःकरण में रहेंगी तब तक महादेवी का प्रकट नहीं होगा, कौन महादेवी ? भक्ति महादेवी
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जा पावन सो चलत हो, लोक वेद की गैल ता पद नाया सर धरो, जल हुई जईहै मैल
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अपने सुख की कामना नई प्रियतम की सेवा की कामना को रख कर के ही भक्ति करना है
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मन ही करता है अतेव समस्त तत्वज्ञ मन को ही संबोधित करके उपदेश देते हैं
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जीव जब तक दिव्यानंद न प्राप्त कर लेगा तब तक वो आनंद की कल्पना कहीं न कहीं करेगा
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जहाँ आनंद की कल्पना बार बार करेगा वहाँ उसकी आसक्ति हो जाएगी
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जहाँ आसक्ति होगी उसी की कामना उत्पन्न होगी और फिर कामना की पूर्ति में लोभ एवं आपूर्ति में क्रोध आदि उत्पन्न होंगे
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इन काम आदि दोषों का परित्याग करना तब तक संभव नहीं जब तक ईश्वरीय दिव्यानंद न प्राप्त हो जाए
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संसारी कामना जब तक अंतःकरण में है तब तक उपासना असम्भव, कठिन है ऐसा नहीं
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उपासना शब्द का अर्थ क्या होता है मन में ईश्वर की कामना इसका नाम उपासना
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संसार की कामना और ईश्वर की कामना ये दोनों विरोधी वस्तु
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बिना कामना छोड़े भगवान की उपासना नहीं हो सकती
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कामना बिना उपासना के जा नहीं सकती क्योंकि आनंद प्राप्ति न होगी तो कामना कैसे जाएगी
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कामनाओं को मिटाना नहीं है पहली बात ये समझिए
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दोषों को छोड़ना नहीं है इनको समाप्त करने की स्कीम ही नहीं बनाना है ये प्लानिंग गलत क्योंकि समाप्त नहीं हो सकती
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ये समझो कि संसार की कामना क्यों डेंजरस है येह बात समझ में बैठ जाए तो फिर चुटकियों का काम कोई परिश्रम नहीं
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सोचो क्या संसार में सुख है ? निष्पक्ष होकर सोचो, नहीं तो फिर संसार की कामना व्यर्थ बकवास तुम तो पागल नहीं हो समझदार हो
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गरीब जितना दुखी है पैसे के लिए करोड़पति उतना ही दुखी है पैसे के लिए ये बात समझ में बैठती नहीं है
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जिसने बहुत खाया है वही रसगुल्ले का मरीज होगा जिसने कभी नहीं खाया वो रसगुल्ला नाम से क्या परिचित होगा उसे क्या पता रसगुल्ला क्या बलाए है
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जो पदार्थ जिस व्यक्ति को अधिक मिला है वही उसका मरीज होगा
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जितना विषय सेवन करोगे उतने वो इच्छाएँ बढ़ती जाएगी वो घटती नहीं
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जिस विषय में अधिक दिन रहेगा उसी की कामना पैदा होगी उसी का मरीज रहेगा
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संसार में सुख नहीं है ये निश्चय सबको अपने अंदर है भीतर सबको सुख के न होने का अनुभव है
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संसार सम्बन्धी कामना की पूर्ति से भी हानि है अपूर्ति से भी हानि है यदि इस फिलोसोफी को अच्छी प्रकार से खूब चिंतन पूर्वक समझ लिया जाए संसार की कामना पैदा हो ही नहीं सकती सारा संसार इकट्ठा हो जाए
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केवल शास्त्र वेद के आधार पर 'मानना' गलत लोगों के कहने पर 'मानना' गलत
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स्वयं अच्छी प्रकार उसके रीजन को, उसके साइंस को समझ करके यदि हम येह निश्चय कर ले संसार में सुख नहीं है
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भगवान की ताकत नहीं कि संसार में हमारे मन का अटैचमेंट करा दे किसी की कोई ताकत नहीं
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हम लोग 1 सेकंड में कर लेते है अगर आप कहे बड़ा कठिन है अटैचमेंट हटाना अरे रोज हटाते हो
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तुमारा प्यार संसार वाला वो कामना संसार वाली रोज हटती है
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जरा सा अपमान कर दिया बेटे ने नालायक बेटा है शकल नहीं देखना चाहते
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हमें येह बात यदि समझ में अच्छी प्रकार से आ जाए हम समझ लें इस बात को की संसार में सुख नहीं है तो कोई भी शक्ति ऐसी नहीं है जो हमारा कहीं प्यार करा दे किसी की कोई कामना पैदा करा दे कोई शक्ति नई, सर पटक के मर जाएगी
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जब हमारी बुद्धि कहती है, हाँ यहाँ सुख है बस कामना पैदा हुई बुद्धि ने कहा नहीं जी यहाँ सुख नहीं है, अबाउट टर्न
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जहाँ हम देखते हैं हमारा स्वार्थ हल होगा वंही प्यार हो जाएगा
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जहाँ स्वार्थ हल होने की बात बुद्धि में स्वार्थ हल हो न होगा क्वेश्चन नई बुद्धि में केवल ये बात बैठ जाए वंही प्यार हो जाएगा
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गुरु व्रत हो भगवत व्रत हो उसका अर्थ तो ये है की मन से भी उसके विपरीत कभी कुछ न सोचे हो
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भक्त भगवान की इच्छा में इच्छा रखता है कभी विपरीत चिंतन नहीं करता जैसे शिष्य गुरु की इच्छा में इच्छा रखता है
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यदि बुद्धि में ये निश्चय भर जाए संसार में सुख नहीं है तो फिर कोई कामना उत्पन्न हो सकती ये सबका अनुभव है डेली का
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गड़बड़ ये है की हमारी बुद्धि ने संसार में सुख का निश्चय अनंत जन्मों से कर रखा है इसलिए बड़ा गहरा हो गया है निश्चय उसका बड़ा गहरा है पक्का सा हो गया है इसलिए उसको मिटाने में ये ही बुद्धि तो मिटाएगी
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जो बुद्धि निश्चय किए है की संसार में सुख है उसी बुद्धि को ये निश्चय करना है संसार में सुख नहीं है
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संसार में सुख नहीं है ये बुद्धि में निश्चय भरो प्लस तुरंत दूसरी साइड में चलो
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ये मन चुप नहीं बैठ सकता ये तो कामना बनाएगा जब तक आनंद नहीं मिल जाएगा
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इस मन को जब येह तुम बताओ की संसार में सुख नहीं है तो तुरंत येह भी बताओ भगवान में सुख है
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अरे भई हमको जाना है शिवाजी पार्क इधर से रास्ता नहीं है प्लस इधर से है ये भी तो बताओ
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ये मन तो खड़ा नहीं हो सकता ये तो कहता जल्दी बताओ नई हम जा रहे हैं वहीं जहाँ से आए थे 1 सेकंड हम रुकने वाले नहीं या तो बताओ कहाँ चले तो उसको फौरन बताओ श्याम सुन्दर में ही सुख है
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प्रत्येक इंद्रिय का उपयोग है महापुरुष और भगवान की सेवा में लगाओ इन इंद्रियों का उपयोग है इसलिए नहीं है की वो बेकार है फोड़ दो नष्ट कर दो या संसार में गमा दो
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श्याम सुन्दर/महापुरुष के कब दर्शन होंगे ये कामना बढ़ाते जाओ इधर से हटा कर इधर बढ़ाते जाओ
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अभ्यास के बिना काम नहीं चलेगा पहली बात तो यही बड़ी दुर्लभ बात है की बात सही समझ में आ जाए
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बिना गुरु के तत्वज्ञान नहीं हो सकता सही थ्योरी समझ में नहीं आ सकती सब उल्टी पल्टी बात समझ में आएगी
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वो बात अगर समझाने वाला मिल गया और समझ में बैठ गई बात इससे बड़ी क्या भगवत कृपा होगी
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क्या तुम समझते हो तुम इसी प्रकार बने रहोगे अनंत काल तक संसार में
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अरे क्या पता कल का दिन मिले न मिले तुम्हारी सब प्लानिंग धरी रह जाएगी
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जैसे तुम्हारे कपड़े में आग लग जाती है जल्दी से दौड़ कर के उसको पकड़ लेते हो बुझाने की चेष्टा करते हो ऐसे जल्दी करो, अगला क्षण मिले न मिले
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तुम किस आधार पर निश्चिन्त हो आखिर तुम इतने अंधे हो की रोज देखते हो लोग जा रहे हैं और तुम्हें अपना होश नहीं है
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बड़े बड़े ऋषि मुनि योगी चले गए और तुम ऐसी हिम्मत कर रहे हो, समझते हो और फिर भी साधना नहीं करते ये पागलों के लक्षण है
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समझ भी गए और शरीर नश्वर है ये भी जानते हैं और फिर भी लापरवाही करते
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इस प्रकार इन पांचों कामनाओं को ईश्वर की ओर डायवर्ट कर देना श्याम सुन्दर सम्बंधी ही कर देना है बस और कुछ नहीं करना
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सुख देखा नहीं जाता सुख देखने की बीमारी ही हमको बर्बाद कर रही है हम लोग सुख देखते हैं सुख भोगा जाता है
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जब तक वो सामान नहीं मिलता तब तक हम समझते हैं वहाँ सुख होगा जो वहाँ पहुँच गए अरे अरे अरे धोखा है इसके आगे होगा इसी होड़ में जीव चला जा रहा है
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उनका दर्शन हो, आज दर्शन हो जाएगा उनका आज रात को 12 बजे अवश्य होगा 12 बज गए 1 बज गए, 2 बज गए, नहीं हुआ अब क्रोध आया, देखो अपने आप क्रोध आता है बिना बुलाए
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ये शरीर अब पता नहीं कब समाप्त हो जाए श्याम सुन्दर फिर भी नहीं मिले मैं क्या करूँ, क्या करूँ, ये फीलिंग जितनी ये फीलिंग होगी उतनी तेज भक्ति बढ़ेगी
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जितनी प्यास बढ़ेगी उतने नजदीक हो जायेंगे श्याम सुन्दर के
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हाए तुम्हारे बिना इतना जीवन बीत गया पता नहीं अगला क्षण मिले न मिले फिर क्या होगा मानव देह भी छिन जाएगा मूल धन भी गया इस प्रकार की खीझ होना
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ये अहंकार बना रहे हैं वे मेरे स्वामी मैं उनके दास, संसार क्या करेगा, ऐ माया क्या करेगी हमारा ये गर्व रहना चाहिए
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यदि ज्ञान को नित्य साथ रखे ये परिवर्तन गलत ढंग का न हो आगे बढ़ते जाए निराशा न आवे, आलस्य न आवे
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ये लापरवाही है मानव देह का मूल्य न समझना
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लोभ भी रखिऐ क्रोध भी रखिऐ कामना भी रखिऐ सारे दोष रहेंगे लेकिन ये दोष जब ईश्वर के निमित्त होते हैं तो इनको गुण कहते हैं ये दिव्य हो जाती है और ये कंपल्सरी हैं
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यदि हम अपने काम क्रोध लोभ मोह को ईश्वरीय क्षेत्र में घुमा दे ईश्वर सम्बंधी कामना कर दे, ईश्वर सम्बंधी लोभ कर दे ये हमारे दोष गुण बन जाएंगे और हम अपने परम चरम लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे